कहाँ गए वो वीर जो रण में होली खेले थे.....
कहाँ गए वो वीर जो रण में होली खेले थे।
कहाँ गए वो वीर जो रण में होली खेले थे।।
मेला सा लग जाता था,
जब कोई वीर घर आता था।
और गलियों में सन्नाटा होता जब कोई वीरगति पाता था।।
फिर भी,
मौत का भय न करके उन्होंने,
दुश्मन के वार झेले थे।
कहाँ गए वो वीर जो रण में होली खेले थे।।
हर दुश्मन के दांत,
जिन्होंने खट्टे कर डाले थे।
ऐसे थे वो वीर सभी,
जो हिम्मती मांओं ने पाले थे।।
तीजों पर भी जो सरहद पर,
खड़े हमेशा अकेले थे।
कहाँ गए वो वीर जो रण में होली खेले थे।।
Very nice 👍
ReplyDeleteBeautiful poem👏👏♥️♥️
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